खालिस्तान के मुद्दे के संबंध में भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ रहा है, और इसके परिणामस्वरूप जी20 के बाद से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
कनाडा के राजनयिक के निष्कासन का परिणाम: जी20 के बाद, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने के लिए योजनित ट्रेड मिशन को रोकने का निर्णय लिया। इसके बिना किसी प्रकार के कारण के उल्लंघन के, उन्होंने भारत के साथ इस व्यापारिक समझौते को ठप्प कर दिया। यह निर्णय उन्होंने खालिस्तान समर्थक संगठनों की प्रोत्साहन और समर्थन के रूप में देखा जा सकता है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कनाडा के राजदूत को तलब किया और एक सीनियर डिप्लोमैट को देश से निकालने का आदेश दिया है। इस निर्णय के पीछे कई गंभीर कारण हो सकते हैं, जो विदेश मंत्रालय के द्वारा नहीं जारी किए गए हैं। यह घटना कनाडा और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों में किसी तरह की तनाव की प्रतीक हो सकती है, जिसका समाधान उन्होंने तलवार की तरह की है।
किसी भी दूतावास के अच्छे-बुरे फैसले के पीछे सामाजिक, राजनीतिक, या राष्ट्रीय मुद्दे हो सकते हैं, जिनका उल्लेख न्यूज़ रिपोर्ट में नहीं किया गया है। ऐसे मामलों में, विदेश मंत्रालय उचित संवाद और सुलझाव की कोशिश करता है ताकि दो देशों के बीच किसी बड़े विवाद को अल्पकालिक और समझौते से सुलझाया जा सके।
ऐसे मामलों में, राजदूतों के प्रति ज़िम्मेदारी होती है कि वे दोनों देशों के बीच संवाद और समझौते के माध्यम से संबंधों को बनाए रखें और संवाद की प्रक्रिया को बढ़ावा दें।
व्यापारिक प्रभाव: इस व्यापारिक संधि को स्थगित करने का निर्णय, भारत और कनाडा के बीच व्यापार संबंधों पर भी प्रभाव डाल सकता है। यह दोनों देशों के बीच व्यापार में आराम से रुकावट डाल सकता है और व्यापारिक संबंधों को प्रभावित कर सकता है। कनाडा की इकॉनमी पर भी इसका असर हो सकता है, क्योंकि व्यापार संबंधों की खालिस्तान मुद्दे के कारण business में कमी हो सकती है।
इस प्रकार, खालिस्तान मुद्दे के संबंध में दोनों देशों के बीच व्यापार और दिप्लोमेसी में तनाव के बढ़ जाने के साथ, इसके असर को बेहतर समझना और सुलझाने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि दोनों देश अपने संबंधों को स्थिर रख सकें।